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Thursday, November 25, 2021

भारत संविधान दिवस 2021

 भारत संविधान दिवस 2021

संविधान दिवस: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के 'धर्मग्रंथ' के बारे में कुछ खास बातें

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हमारे देश के लोकतंत्र को संचालित करने वाली किताब का नाम है भारतीय संविधान। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के धर्मग्रंथ यानी भारत के संविधान को आजादी के आंदोलन के दौरान जागृत हुई राजनीतिक चेतना का परिणाम कहा जाए तो गलत नहीं होगा। भारतीय संविधान में देश के सभी समुदायों और वर्गों के हितों को देखते हुए विस्तृत प्रावधानों का समावेश किया गया है। 

इसी का परिणाम है कि आजादी के 74 वर्षों के बाद भी भारतीय संविधान अक्षुण्ण, जीवंत और सतत क्रियाशील बना हुआ है। भारतीय संविधान को संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को ग्रहण किया था और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। 26 नवंबर को संविधान दिवस है और इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं हमारे संविधान से संबंधित कुछ खास बातें.. 

क्या होता है संविधान, क्या है अहमियत

सामान्य तौर पर, संविधान को नियमों और उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज कहा जाता है, जिसके आधार पर किसी देश की सरकार काम करती है। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढांचा निर्धारित करता है। हर देश का संविधान उस देश के आदर्शों, उद्देश्यों और मूल्यों का संचित प्रतिबिंब होता है। संविधान महज एक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह समय के साथ लगातार विकसित होता रहता है। 

दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान

भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है जो तत्त्वों और मूल भावना के नजरिए से अद्वितीय है। मूल रूप से भारतीय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और आठ अनुसूचियां थीं, लेकिन विभिन्न संशोधनों के परिणामस्वरूप वर्तमान में इसमें कुल 448 अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियां हैं। इसके साथ ही इसमें पांच परिशिष्ट भी जोड़े गए हैं, जो पहले नहीं थे। 

इस तरह तैयार हुआ संविधान का मसौदा

भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति की स्थापना 29 अगस्त 1947 को हुई थी। डॉ. भीमराव आंबेडकर को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। यही कारण है कि डॉ. आंबेडकर को संविधान का निर्माता भी कहा जाता है। भारत में संविधान के निर्माण का श्रेय मुख्यतः संविधान सभा को दिया जाता है। संविधान सभा के गठन का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1934 में वामपंथी नेता एमएन रॉय ने दिया था।

1946 में ‘क्रिप्स मिशन’ की असफलता के बाद तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया था। कैबिनेट मिशन की ओर से पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से अंततः भारतीय संविधान के निर्माण के लिए एक बुनियादी ढांचे का प्रारूप स्वीकार किया गया, जिसे ‘संविधान सभा’ नाम दिया गया। इसके 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे। इसे पारित करने में दो साल, 11 महीने और 18 दिन लगे थे। 

संविधान में दिए गए हैं छह मौलिक अधिकार

संविधान के तीसरे भाग में छह मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। वस्तुतः मौलिक अधिकार का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक लोकतंत्र की भावना को प्रोत्साहन देना है। यह एक प्रकार से कार्यपालिका और विधायिका के मनमाने कानूनों पर निरोधक की तरह कार्य करता है। मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में इन्हें न्यायालय के माध्यम से लागू किया जा सकता है। इसके अलावा भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता को भी इसकी प्रमुख विशेषता माना जाता है। धर्मनिरपेक्ष होने के कारण भारत में किसी एक धर्म को विशेष मान्यता नहीं दी गई है। 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना

भारत के संविधान की प्रस्तावना को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसे अमेरिका के संविधान से प्रभावित माना जाता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना यह कहती है कि संविधान की शक्ति सीधे तौर पर जनता में निहित है। भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। यह सरकार के मौलिक राजनीतिक सिद्धांतों, प्रक्रियाओं, प्रथाओं, अधिकारों, शक्तियों और कर्त्तव्यों का निर्धारण करता है। 

1976 में जोड़ा गया धर्मनिरपेक्ष शब्द

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ा गया था। संविधान से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न संविधान की व्याख्या अथवा अर्थविवेचन से जुड़ा हुआ है। नियमों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय संविधान का अंतिम व्याख्याकर्ता या अर्थविवेचनकर्ता है। सर्वोच्च न्यायालय ही संविधान में निहित प्रावधानों और उसमें उपयोग की गई शब्दावली के अर्थ और निहितार्थ के विषय में अंतिम कथन प्रस्तुत कर सकता है।

संवैधानिक व्याख्या और उसका महत्त्व

‘संवैधानिक व्याख्या’ का मतलब संविधान के अर्थ या अनुप्रयोग से संबंधित विवादों को हल करने की कोशिश के रूप में संविधान के विभिन्न प्रावधानों की विवेचना करने से है, जिससे प्रावधानों के दायरे को विस्तृत किया जा सके। संविधान कोई जड़ दस्तावेज नहीं होता, बल्कि यह एक गतिशील दस्तावेज है, जो समाज की बदलती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समय के साथ विकसित और बदलता रहता है।

संसद जिन कानूनों को पारित करतीहै उन्हें आसानी से लागू किया जा सकता है और उतनी ही आसानी से उन्हें निरस्त भी किया जा सकता है जबकि संविधान की प्रकृति कानून से काफी अलग होती है। संविधान का निर्माण भविष्य को ध्यान में रखकर किया जाता है और उसे निरस्त करना अपेक्षाकृत काफी कठिन होता है। इसीलिये मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार, इसकी व्याख्या की जानी आवश्यक होती है।

मौजूदा दौर में संवैधानिक व्याख्या

आज का समय संवैधानिक व्याख्या के विकास का चौथा चरण कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे कई फैसले सुनाए हैं जिनमें व्यक्ति के अधिकारों को मान्यता देकर सामाजिक परिवर्तन के युग की शुरुआत की गई है। बीते वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने 10-50 वर्ष की महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने से रोकने वाले प्रतिबंध को हटा दिया था और कहा था कि ‘भक्ति में लिंगभेद नहीं हो सकता’। वहीं, साल 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था।

संविधान के अभाव में कैसी होगी स्थिति

सामाजिक विनियमन की पहली परिकल्पना थॉमस हॉब्स द्वारा सामाजिक समझौते के सिद्धांत में की गई जिसको मनुष्य की प्राकृतिक अवस्था (जहां मनुष्य को दो ही अधिकार प्राप्त हैं, पहला- अपने जीवन की रक्षा का अधिकार और दूसरा- अपने जीवन की रक्षा के लिए कुछ भी करने का अधिकार) की परिस्थितियों से बेहतर सामाजिक प्रगति के क्रम में देखा गया। प्राकृतिक अवस्था की परिस्थितियों में समाज में व्यापक स्तर पर अव्यवस्था व्याप्त थी क्योंकि मनुष्य स्वयं की रक्षा के नाम पर किसी दूसरे के अधिकारों का क्षण भर में ही हनन कर देता था। प्राकृतिक अवस्था की स्थिति 'शक्ति ही सत्य है' पर आधारित थी। इसलिए इससे लोगों को हमेशा अपने प्राण, अधिकार और संपत्ति छिन जाने का संशय रहता था। अतः लोगों ने सामूहिक स्तर पर राजनीति और सामाज की बेहतर व समन्वित व्यवस्था के लिए सामाजिक समझौते के सिद्धांत पर सहमति व्यक्त की, जिसमें सभी लोगों द्वारा एक-दूसरे के अधिकारों के सम्मान की व्यवस्था स्थापित की गई।

संविधान दिवस

दिनांक 26 नवंबर, 2021 को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इसके अंतर्गत निम्नलिखित गतिविधियां विद्यालय में आयोजित की जाएंगी:-

1 संविधान की प्रस्तावना का पठन:- सभी छात्र व अध्यापक दिए गए  लिंक पर संविधान की प्रस्तावना को हिंदी भाषा में पढ़ेंगे तथा प्रमाणपत्र प्राप्त कर ग्रुप में भेजेंगे।

https://secure.mygov.in/read-the-preamble-india/


2 सभी कक्षा अध्यापक छात्रों को 'नागरिक के अधिकार व कर्तव्य' के बारे में अपनी कक्षाओं में बताएंगे तथा सत्र की फोटो/रिकॉर्डिंग ग्रुप में भेजेंगे।


3 राष्ट्र के माननीय राष्ट्रपति कल दिनांक 26 नवंबर, 2021 को प्रातः 11:00 बजे पूरे राष्ट्र को संबोधित करेंगे। इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण (लाइव) सभी छात्र टी.वी./यूट्यूब पर देखेंगे तथा फोटो ग्रुप में भेजेंगे।


4 इस अवसर पर एक प्रश्नोत्तरी (क्विज़) का आयोजन भी किया जाएगा। सभी छात्र तथा अध्यापक दिए गए लिंक पर क्लिक करके संविधान पर आधारित प्रश्नोत्तरी को हल करेंगे तथा प्रमाण पत्र प्राप्त कर ग्रुप में भेजेंगे।

https://quiz.mygov.in/quiz/constitution-day-quiz/

Monday, March 8, 2021

महिला दिवस 2021

 


Monday, March 8, 2021

महिला दिवस 2021

 

भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए कैसे किय जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है।
माता का हमेशा सम्मान हो
 
मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे।
 
किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है, यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। इस बारे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए।
 
 
बाजी मार रही हैं लड़कियां
अगर आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखा जा सकता है । विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए।
 
कंधे से कंधा मिलाकर चलती नारी
नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है। 
 
उसे इस दौरान घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है, जबकि इस दौरान लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। कुछ नवुयवक तो ठीक से पढ़ाई भी नहीं करते हैं, जबकि उन्हें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं रहता है। इस नजरिए से देखा जाए, तो नारी सदैव पुरुष के साथ कंधेसे कंधा मिलाकर तो चलती ही है, बल्कि उनसे भी अधि‍क जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करती हैं। नारी इस तरह से भी सम्माननीय है।
 
विवाह पश्चात
विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारि‍यां आ जाती है। पति, सास-ससुर, देवर-ननद की सेवा के पश्चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता। वे कोल्हू के बैल की मानिंद घर-परिवार में ही खटती रहती हैं। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चौके-चूल्हे में खटने में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर-परिवार की खातिर। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है वे अपने लिए भी जिएं। परिवार की खातिर अपना जीवन होम करने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं। परिवार के प्रति उनका यह त्याग उन्हें सम्मान का अधि‍कारी बनाता है।
बच्चों में संस्कार डालना
बच्चों में संस्कार भरने का काम मां के रूप में नारी द्वारा ही किया जाता है। यह तो हम सभी बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि बच्चों की प्रथम गुरु मां ही होती है। मां के व्यक्तित्व-कृतित्व का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का असर पड़ता है। 
 
इतिहास उठाकर देखें तो मां पुतलीबाई ने गांधीजी व जीजाबाई ने शिवाजी महाराज में श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण किया था। जिसका ही परिणाम है कि शिवाजी महाराज व गांधीजी को हम आज भी उनके श्रेष्ठ कर्मों के कारण आज भी जानते हैं। इनका व्यक्तित्व विराट व अनुपम है। बेहतर संस्कार देकर बच्चे को समाज में उदाहरण बनाना, नारी ही कर सकती है। अत: नारी सम्माननीय है।
 
 
अभद्रता की पराकाष्ठा
आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों में पढ़ते व देखते हैं, कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या सामूहिक बलात्कार किया गया। इसे नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो।   
क्या कारण है इसका? प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिन-पर-‍दिन अश्लीलता बढ़ती‍ जा रही है। इसका नवयुवकों के मन-मस्तिष्क पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। वे इसके क्रियान्वयन पर विचार करने लगते हैं। परिणाम होता है दिल्ली गैंगरेप जैसा जघन्य व घृणित अपराध। नारी के सम्मान और उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए इस पर विचार करना बेहद जरूरी है, साथ ही उसके सम्मान और अस्मिता की रक्षा करना भी जरूरी है।
 
 
अशालीन वस्त्र भी एक कारण
कतिपय 'आधुनिक' महिलाओं का पहनावा भी शालीन नहीं हुआ करता है। इन वस्त्रों के कारण भी यौन-अपराध बढ़ते जा रहे हैं। इन महिलाओं का सोचना कुछ अलग ढंग का हुआ करता हैं। वे सोचती हैं कि हम आधुनिक हैं। यह विचार उचित नहीं कहा जा सकता है। अपराध होने यह बात उभरकर सामने नहीं आ पाती है कि उनके वस्त्रों के कारण भी यह अपराध प्रेरित हुआ है।
 
‍इतिहास से
देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, इला भट्ट, महादेवी वर्मा, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
 
इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया है। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता, पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें 'चतुर महिला' तक कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं।
 
अंत में...
अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।