गरम जामुन - पूर्णिमा वर्मन
बहुत समय पहले की बात है, सुंदरवन में श्वेतू नामक एक बूढ़ा खरगोश रहता था। वह इतनी अच्छी कविता लिखता था कि सारे जंगल के पशु्पक्षी उन्हें सुनकर दातों तले उँगली दबा लेते और विद्वान तोता तक उनका लोहा मानता था।
श्वेतू खरगोश ने शास्त्रार्थ में सुरीली कोयल और विद्वान मैना तक को हरा कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारण जंगल का राजा शेर भी उसका आदर करता था। पूरे दरबार में उस जैसा विद्वान कोई दूसरा न था। धीरे-धीरे उसे अपनी विद्वत्ता का बड़ा घमण्ड हो गया।
एक दिन वह बड़े सवेरे खाने की तलाश में निकला। बरसात के दिन थे, काले बादलों ने घिरना शुरू ही किया था। मौसम की पहली बरसात होने ही वाली थी। सड़क के किनारे जामुनों के पेड़ काले-काले जामुनों से भरे झुके हुए थे। बड़े-बड़े, काले, रसीले जामुनों को देखकर श्वेतू के मुँह में पानी भर आया।
एक बड़े से जामुन के पेड़ के नीचे जाकर उसने आँखें उठाई और ऊपर देखा तो नन्हें तोतों का एक झुण्ड जामुन खाता दिखाई दिया। बूढ़े खरगोश ने नीचे से आवाज़ दी, "प्यारे नातियों मेरे लिये भी थोड़े से जामुन गिरा दो।"
उन नन्हें तोतों मे मिठ्ठू नाम का एक तोता बड़ा शरारती और चंचल था। वह ऊपर से ही बोला, 'दादा जी, यह तो बताइये कि आम गरम जामुन खायेंगे या ठंडी?"
बेचारा बूढ़ा श्वेतू खरगोश हैरान होकर बोला, "भला जामुन भी कहीं गरम होते हैं? चलो मुझसे मज़ाक न करो। मुझे थोड़े से जामुन तोड़ दो।"
मिठ्ठू बोला, "अरे दादाजी, आप ठहरे इतने बड़े विद्वान। यह भी नहीं जानते कि जामुन गरम भी होते हैं और ठंडे भी। पहले आप बताइये कि आपको कैसे जामुन चाहिये? भला इसे जाने बिना मैं आपको कैसे जामुन दूँगा?"
बूढ़े और विद्वान खरगोश की समझ में बिलकुल भी न आया कि जामुन गरम भला कैसे होंगे? फिर भी वह उस रहस्य को जानना चाहता था इसलिये बोला, "बेटा, तुम मुझे गरम जामुन ही खिलाओ ठंडे तो मैंने बहुत खाए हैं।"
नन्हें मिठ्ठू ने बूढ़े श्वेतू की यह बात सुनकर जामुन की एक डाली को ज़ोर से हिलाया। पके-पके ढेर से जामुन नीचे धूल में बिछ गये। बूढ़ा श्वेतू उन्हें उठाकर धूल फूँक-फूँक कर खाने लगा। यह देखकर नन्हें मिठ्ठू ने पूछा, "क्यों दादाजी, जामुन खूब गरम हैं न?"
"कहाँ बेटा? ये तो साधारण ठंडे जामुन ही हैं।" खरगोश बोला। नन्हें मिठ्ठू तोते ने चौंक कर पूछा, "क्या कहा ठंडे हैं? तो फिर आप इन्हें फूँक-फूँक कर क्यों खा रहे हैं? इस तरह तो सिर्फ गरम चीजें ही खाई जाती है।"
नन्हें मिठ्ठू तोते की बात का रहस्य अब जाकर बूढ़े खरगोश की समझ में आया और वह बड़ा शर्मिन्दा हुआ। इतना विद्वान बूढ़ा श्वेतू खरगोश जरा सी बात में छोटे से तोते के बच्चे से हार गया था। उसका घमण्ड दूर हो गया और उसने एक कविता लिखी - खूब कड़ा तना शीशम का, बड़े कुल्हाड़े से कट जाता। लेकिन वो ही बड़ा कुल्हाड़ा, कोमल केले से घिस जाता। सच है कभी-कभी छोटे भी, ऐसी बड़ी बात कहते हैं। बहुत बड़े विद्वान गुणी भी, अपना सिर धुनने लगते हैं। कक्षा: सातवीं | और चाँद फूट गया - पूर्णिमा वर्मन
आशीष और रोहित के घर आपस में मिले हुए थे। रविवार के दिन वे दोनों बड़े सवेरे उठते ही बगीचे में आ पहुँचे। " तो आज कौन सा खेल खेलें ?" रोहित ने पूछा। वह छह वर्ष का था और पहली कक्षा में पढ़ता था। "कैरम से तो मेरा मन भर गया। क्यों न हम क्रिकेट खेलें ?" आशीष ने कहा। वह भी रोहित के साथ पढ़ता था। "मगर उसके लिये तो ढेर सारे साथियों की ज़रूरत होगी और यहाँ हमारे तुम्हारे सिवा कोई है ही नहीं।" रोहित बोला।
वे कुछ देर तक सोचते रहे फिर आशीष ने कहा, "चलो गप्पें खेलते हैं।" "गप्पें? भ़ला यह कैसा खेल होता है?" रोहित को कुछ भी समझ में न आया। "देखो मैं बताता हूँ आ़शीष ने कहा, "हम एक से बढ़ कर एक मज़ेदार गप्प हाँकेंगे। ऐसी गप्पें जो कहीं से भी सच न हों। बड़ा मज़ा आता है इस खेल में। चलो मैं ही शुरू करता हूँ यह जो सामने अशोक का पेड़ है ना रात में बगीचे के तालाब की मछलियाँ इस पर लटक कर झूला झूल रही थीं। रंग बिरंगी मछलियों से यह पेड़ ऐसा जगमगा रहा था मानो लाल परी का राजमहल।"
अच्छा! रोहित ने आश्चर्य से कहा, "और मेरे बगीचे में जो यूकेलिप्टस का पेड़ है ना इ़स पर चाँद सो रहा था। चारों ओर ऐसी प्यारी रोशनी झर रही थी कि तुम्हारे अशोक के पेड़ पर झूला झूलती मछलियों ने गाना गाना शुरू कर दिया।" "अच्छा! कौन सा गाना?" आशीष ने पूछा। "वही चंदामामा दूर के पुए पकाएँ बूर के।" रोहित ने जवाब दिया। "अच्छा! फिर क्या हुआ?" "फिर क्या होता, मछलियाँ इतने ज़ोर से गा रही थीं कि चाँद की नींद टूट गयी और वह धड़ाम से मेरी छत पर गिर गया।" "फिर?" "फिर क्या था, वह तो गिरते ही फूट गया।" "हाय, सच! चाँद फूट गया तो फिर उसके टुकड़े कहाँ गये?" आशीष ने पूछा। वे तो सब सुबह-सुबह सूरज ने आकर जोड़े और उनपर काले रंग का मलहम लगा दिया। विश्वास न हो तो रात में देख लेना चाँद पर काले धब्बे ज़रूर दिखाई देंगे।" अच्छा ठीक है मैं रात में देखने की कोशिश करूँगा।" आशीष ने कहा। वह एक नयी गप्प सोच रहा था। "हाँ याद आया, आशीष बोला, "पिछले साल जब तुम्हारे पापा का ट्रांसफर यहाँ नहीं हुआ था तो एक दिन खूब ज़ोरों की बारिश हुई। इतनी बारिश कि पानी बूँदों की बजाय रस्से की तरह गिर रहा था। पहले तो मैं उसमें नहाया फिर पानी का रस्सा पकड़ कर ऊपर चढ़ गया। पता है वहाँ क्या था?" "क्या था?" रोहित ने आश्चर्य से पूछा। "वहाँ धूप खिली हुई थी। धूप में नन्हें नन्हें घर थे, इन्द्रधनुष के बने हुए। एक घर के बगीचे में सूरज आराम से हरी-हरी घास पर लेटा आराम कर रहा था और नन्हंे-नन्हें सितारे धमाचौकड़ी मचा रहे थे " "सितारे भी कभी धमाचौकड़ी मचा सकते हैं?" रानी दीदी ने टोंक दिया। न जाने वो कब आशीष और रोहित के पास आ खड़ी हुई थीं और उनकी बातें सुन रही थीं। "अरे दीदी, हम कोई सच बात थोड़ी कह रहे हैं।" रोहित ने सफाई दी। "अच्छा तो तुम झूठ बोल रहे हो?" रानी ने धमकाया। "नहीं दीदी, हम तो गप्पें खेल रहे हैं और हम खुशी के लिये खेल रहे हैं, किसी का नुक्सान नहीं कर रहे हैं।" आशीष ने कहा। "भला ऐसी गप्पें हाँकने से क्या फायदा जिससे किसी का उपकार न हो। मैने एक गप्प हाँकी और दो बच्चों का उपकार भी किया।" "वो कैसे ?" दोनों बच्चों ने एक साथ पूछा।
अभी अभी तुम दोनों की मम्मियाँ तुम्हें नाश्ते के लिये बुला रही थीं। उन्हें लगा कि तुम लोग बगीचे में खेल रहे होगे लेकिन मैने गप्प मारी कि वे लोग तो मेरे घर में बैठे पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने मुझसे तुम दोनों को भेजने के लिये कहा हैं।
यह सुनते ही आशीष और रोहित गप्पें भूल कर अपने-अपने घर भागे। उन्हें डर लग रहा था कि मम्मी उनकी पिटाई कर देंगी लेकिन मम्मियों ने तो उन्हें प्यार किया और सुबह-सुबह पढ़ाई करने के लिये शाबशी भी दी। रानी दीदी की गप्प को वे सच मान बैठी थीं। कक्षा: आठवीं | गल्लू सियार का लालच गौरव गुप्ता की कहानी
मल्लू और गल्लू सियार भाई-भाई थे। मल्लू सीधा-सादा और भोला था। वह बड़ा ही नेकदिल और दयावान था। दूसरी ओर गल्लू एक नम्बर का धूर्त और चालबाज सियार था। वह किसी भी भोले-भाले जानवर को अपनी चालाकी से बहलाकर उसका काम तमाम कर देता था।
एक दिन गल्लू सियार जंगल में घूम रहा था कि उसे रास्ते में एक चादर मिली। जाड़े के दिन नज़दीक थे इसीलिए उसने चादर को उठाकर रख लिया। उसके बाद वह घर की ओर चल दिया।
अगले दिन गल्लू सियार मल्लू के घर गया। ठण्ड की वजह से दरवाजा खोला लेकिन जैसे ही गल्लू अन्दर जाने लगा, तो मल्लू ने दरवाजा बन्द कर लिया। गल्लू को अपने भाई की यह हरकत बहुत बुरी लगी। उसे अपने भाई पर बड़ा क्रोध आया।
भाई के घर से आने के बाद गल्लू नहाने के लिए नदी पर गया। उसको देखकर बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि आज सारे मोटे-मोटे जानवर बड़े बेफिक्र होकर बिना किसी डर के उसके पास से गुजर रहे थे। उसके पानी में घुसने से पहले जैसे ही चादर को उतारा, उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। सारे छोटे-मोटे जानवर अपनी-अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। चारों ओर हाहाकार मच गया। गल्लू को लगा कि जरूर इस चादर का चमत्कार है। उसके मन में विचार आया कि कहीं यह जादुई तो नहीं। जिसको ओढ़ते ही वह अदृश्य हो जाता हो। तभी उसे याद आया कि मल्लू ने भी दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनकर दरवाजा खोला और एकाएक बन्द भी कर लिया, मानो दरवाजे पर कोई हो ही नहीं।
अब उसका शक यकीन में बदल गया और उसे मल्लू पर किसी तरह का क्रोध भी नहीं रहा। वह नहाकर जल्दी से जल्दी अपने भाई मल्लू सियार के पास पहुँचना चाहता था। अत: लम्बे डग भरता हुआ उसके घर जा पहुँचा। उसने मल्लू को वह चादर दिखाई और प्रसन्न होते हुए बोला --
"देखो भाई, इस जादुई चादर को ओढ़ते ही ओढ़ने वाला अदृश्य हो जाता है। मैंने सोच है कि क्यों न इसकी मदद से मैं जंगल के राजा को मारकर खुद जंगल का राजा बन जाऊँ। अगर तुम मेरा साथ दोगे तो मैं तुम्हें महामंत्री का पद दूंगा।
"भाई गल्लू, मुझे महामंत्री पद का कोई लालच नहीं। यदि तुम मुझे राजा भी बना दोगे तो भी मैं नहीं बनूँगा क्योंकि अपने स्वामी से गद्दारी में नहीं कर सकता। मैं तो तुम्हें भी यही सलाह दूंगा कि तुम्हें इस चादर का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए।"
"अपनी सलाह अपने पास ही रखो। मैं भी कितना मूर्ख हूँ जो इस काम में तुम्हारी सहायता लेने की सोच बैठा," गुस्से में भुनभुनाते हुए गल्लू सियार वहाँ से चला गया पर मल्लू सोच में डूब गया।
"अगर गल्लू जंगल का राजा बन बैठा तब तो अनर्थ हो जाएगा। एक सियार को जंगल का राजा बना देखकर पड़ोसी राजा हम पर आक्रमण कर देगा। शक्तिशाली राजा के अभाव में हम अवश्य ही हार जायेंगे और हमारी स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी। यह सोच कर मल्लू सियार सिहर उठा और उसने मन ही मन गल्लू की चाल को असफल बनाने की एक योजना बना डाली।
रात के समय जब सब सो रहे थे तब मल्लू अपने घर से निकला और चुपचाप खिड़की के रास्ते गल्लू के मकान में घुस गया। उसने देखा कि गल्लू की चादर उसके पास रखी हुई है। उसने बड़ी ही सावधानी से उसको उठाया और उसके स्थान पर वैसी ही एक अन्य चादर रख दी जो कि बिल्कुल वैसी थी। इसके बाद वह अपने घर आ गया।
सुबह उठकर नहा-धो कर गल्लू सियार शेर को मारने के लिए चादर ओढ़कर प्रसन्नतापूर्वक उसकी माँद की ओर चल पड़ा। आज उसके पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे थे। आखिर वह अपने को भावी राजा समझ रहा था। माँद में पहुँचकर उसने देखा कि शेर अभी सो रहा था। गल्लू ने गर्व से उसको एक लात मारी और उसको जगा कर गालियाँ देने लगा। शेर चौंक कर उठ गया। वह भूखा तो था ही, उपर से गल्लू ने उसको क्रोध भी दिलाया था, सो उसने एक ही बार में गल्लू का काम तमाम कर दिया।
मल्लू सियार को जब अपने भाई की यह खबर मिली तो उसको बड़ा दुख हुआ पर उसने सोचा कि इसके अलावा जंगल की स्वतंत्रता को बचाने का कोई रास्ता भी तो नहीं था। उसकी आँखों में आँसू आ गए, वह उठा और उसने उस जादुई चादर को जला डाला ताकि वह किसी और के हाथ में न पड़ जाए।
मल्लू ने अपने भाई की जान देकर अपने राजा के प्राण बचाए थे और जंगल की स्वतंत्रता भी। कक्षा: नौवीं | अनोखी तरकीब - पराग ज्ञानदेव चौधरी
बहुत पुरानी बात है। एक अमीर व्यापारी के यहाँ चोरी हो गयी। बहुत तलाश करने के बावजूद सामान न मिला और न ही चोर का पता चला। तब अमीर व्यापारी शहर के काजी के पास पहुँचा और चोरी के बारे में बताया। सबकुछ सुनने के बाद काजी ने व्यापारी के सारे नौकरों और मित्रों को बुलाया। जब सब सामने पहुँच गए तो काजी ने सब को एक-एक छड़ी दी। सभी छड़ियाँ बराबर थीं। न कोई छोटी न बड़ी।
सब को छड़ी देने के बाद काजी बोला, "इन छड़ियों को आप सब अपने अपने घर ले जाएँ और कल सुबह वापस ले आएँ। इन सभी छड़ियों की खासियत यह है कि यह चोर के पास जा कर ये एक उँगली के बराबर अपने आप बढ़ जाती हैं। जो चोर नहीं होता, उस की छड़ी ऐसी की ऐसी रहती है। न बढ़ती है, न घटती है। इस तरह मैं चोर और बेगुनाह की पहचान कर लेता हूँ।"
काजी की बात सुन कर सभी अपनी अपनी छड़ी ले कर अपने अपने घर चल दिए।
उन्हीं में व्यापारी के यहाँ चोरी करने वाला चोर भी था। जब वह अपने घर पहुँचा तो उस ने सोचा, "अगर कल सुबह काजी के सामने मेरी छड़ी एक उँगली बड़ी निकली तो वह मुझे तुरंत पकड़ लेंगे। फिर न जाने वह सब के सामने कैसी सजा दें। इसलिए क्यों न इस विचित्र छड़ी को एक उँगली काट दिया जााए। ताकि काजी को कुछ भी पता नहीं चले।'
चोर यह सोच बहुत खुश हुआ और फिर उस ने तुरंत छड़ी को एक उँगली के बराबर काट दिया। फिर उसे घिसघिस कर ऐसा कर दिया कि पता ही न चले कि वह काटी गई है।
अपनी इस चालाकी पर चोर बहुत खुश था और खुशीखुशी चादर तान कर सो गया। सुबह चोर अपनी छड़ी ले कर खुशी खुशी काजी के यहाँ पहुँचा। वहाँ पहले से काफी लोग जमा थे। काजी १-१ कर छड़ी देखने लगे। जब चोर की छड़ी देखी तो वह १ उँगली छोटी पाई गई। उस ने तुरंत चोर को पकड़ लिया। और फिर उस से व्यापारी का सारा माल निकलवा लिया। चोर को जेल में डाल दिया गया।
सभी काजी की इस अनोखी तरकीब की प्रशंसा कर रहे थे। |
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