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STORY OF THE MONTH

 

कक्षा: छठीं

दोस्ती
कहानी - प्रमिला गुप्ता


शहर से दूर जंगल में एक पेड़ पर गोरैया का जोड़ा रहता था। उनके नाम थे, चीकू और चिनमिन। दोनो बहुत खुश रहते थे। सुबह सवेरे दोनो दाना चुगने के लिये निकल जाते। शाम होने पर अपने घोंसले मे लौट जाते। कुछ समय बाद चिनमिन ने अंडे दिये।

चीकू और चिनमिन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दानों ही बड़ी बेसब्री से अपने बच्चों के अंडों से बाहर निकलने का इंतजार करने लगे। अब चिनमिन अंडों को सेती थी और चीकू अकेला ही दाना चुनने के लिये जाता था।

एक दिन एक हाथी धूप से बचने के लिये पेड़ के नीचे आ बैठा। मदमस्त हो कर वह अपनी सूँड़ से उस पेड़ को हिलाने लगा। हिलाने से पेड़ की वह डाली टूट गयी, जिस पर चीकू और चिनमिन का घोंसला था। इस तरह घोंसले में रखे अंडे टूट गये।

अपने टूटे अंडों को देख कर चिनमिन जोरों से रोने लगी। उसके रोने की आवाज सुन कर, चीकू और चिनमिन का दोस्त भोलू -- उसके पास आये और रोने का कारण पूछने लगे।

चिनमिन से सारी बात सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ। फिर दोनो को धीरज बँधाते हुए भोलू -- बोला, "अब रोने से क्या फायदा, जो होना था सो हो चुका।"

चीकू बोला, "भोलू भाई, बात तो तुम ठीक कर रहे हो, परंतु इस दुष्ट हाथी ने घमंड में आ कर हमारे बच्चों की जान ले ली है। इसको तो इसका दंड मिलना ही चाहिये। यदि तुम हमारे सच्चे दोस्त हो तो उसको मारने में हमारी मदद करो।"

यह सुनकर थोड़ी देर के लिये तो भोलू दुविधा में पड़ गया कि कहाँ हम छोटे छोटे पक्षी और कहाँ वह विशालकाय जानवर। परंतु फिर बोला, "चीकू दोस्त, तुम सच कह रहे हो। इस हाथी को सबक सिखाना ही होगा। अब तुम मेरी अक्ल का कमाल देखो। मैं अपनी दोस्त वीना मक्खी को बुला कर लाता हूँ। इस काम में वह हमारी मदद करेगी।" और इतना कह कर वह चला गया।

भोलू ने अपनी दोस्त वीना के पास पहुँच कर उसे सारी बात बता दी। फिर उसने उससे हाथी को मारने का उपाय पूछा। वीना बोली, "इससे पहले की हम कोई फैसला करे, अपने मित्र मेघनाद मेंढ़क की भी सलाह ले लूँ तो अच्छा रहेगा। वह बहुत अक्लमंद है। हाथी को मारने के लिये जरूर कोई आसान तरीका बता देगा।

चीकू, भोलू और वीना, तीनों मेघनाद मेंढ़क के पास गये। सारी बात सुन कर मेघनाद बोला, "मेरे दिमाग में उसे मारने की एक बहुत ही आसान तरकीब आयी है।

वीना बहन सबसे पहले दोपहर के समय तुम हाथी के पास जा कर मधूर स्वर में एक कान में गुंजन करना। उसे सुन कर वह आनंद से अपनी आँखे बंद कर लेगा। उसी समय भोलू अपनी तीखी चोंच से उसकी दोनो आँखें फोड़ देगा। इस प्रकार अंधा हो कर वह इधर-उधर भटकेगा।

थोड़ी देर बाद उसको प्यास लगेगी तब मैं खाई के पास जा कर अपने परिवार सहित जोर-जोर से टर्-टर् की आवाज करने लगूँगा। हाथी समझेगा की यह आवाज तालाब से आ रही है। वह आवाज की तरफ बढ़ते बढ़ते खाई के पास आयेगा और उसमें जा गिरेगा और खाई में पड़ा पड़ा ही मर जाएगा।

सबको मेघनाद की सलाह बहुत पसंद आयी। जैसा उसने कहा था, वीना और भोलू ने वैसा ही किया। इस तरह छोटे छोटे जीवों ने मिल कर अपनी अक्ल से हाथी जैसे बड़े जीव को मार गिराया और फिर से प्यार से रहने लगे।

कक्षा: सातवीं

और चाँद फूट गया
- पूर्णिमा वर्मन


आशीष और रोहित के घर आपस में मिले हुए थे। रविवार के दिन वे दोनों बड़े सवेरे उठते ही बगीचे में आ पहुँचे।
" तो आज कौन सा खेल खेलें ?" रोहित ने पूछा। वह छह वर्ष का था और पहली कक्षा में पढ़ता था।
"कैरम से तो मेरा मन भर गया। क्यों न हम क्रिकेट खेलें ?" आशीष ने कहा। वह भी रोहित के साथ पढ़ता था।
"मगर उसके लिये तो ढेर सारे साथियों की ज़रूरत होगी और यहाँ हमारे तुम्हारे सिवा कोई है ही नहीं।" रोहित बोला।

वे कुछ देर तक सोचते रहे फिर आशीष ने कहा, "चलो गप्पें खेलते हैं।"
"गप्पें? भ़ला यह कैसा खेल होता है?" रोहित को कुछ भी समझ में न आया।
"देखो मैं बताता हूँ आ़शीष ने कहा, "हम एक से बढ़ कर एक मज़ेदार गप्प हाँकेंगे। ऐसी गप्पें जो कहीं से भी सच न हों। बड़ा मज़ा आता है इस खेल में। चलो मैं ही शुरू करता हूँ यह जो सामने अशोक का पेड़ है ना रात में बगीचे के तालाब की मछलियाँ इस पर लटक कर झूला झूल रही थीं। रंग बिरंगी मछलियों से यह पेड़ ऐसा जगमगा रहा था मानो लाल परी का राजमहल।"

अच्छा! रोहित ने आश्चर्य से कहा, "और मेरे बगीचे में जो यूकेलिप्टस का पेड़ है ना इ़स पर चाँद सो रहा था। चारों ओर ऐसी प्यारी रोशनी झर रही थी कि तुम्हारे अशोक के पेड़ पर झूला झूलती मछलियों ने गाना गाना शुरू कर दिया।"
"अच्छा! कौन सा गाना?" आशीष ने पूछा। "वही चंदामामा दूर के पुए पकाएँ बूर के।" रोहित ने जवाब दिया।
"अच्छा! फिर क्या हुआ?"
"फिर क्या होता, मछलियाँ इतने ज़ोर से गा रही थीं कि चाँद की नींद टूट गयी और वह धड़ाम से मेरी छत पर गिर गया।"
"फिर?"
"फिर क्या था, वह तो गिरते ही फूट गया।"
"हाय, सच! चाँद फूट गया तो फिर उसके टुकड़े कहाँ गये?" आशीष ने पूछा।
वे तो सब सुबह-सुबह सूरज ने आकर जोड़े और उनपर काले रंग का मलहम लगा दिया। विश्वास न हो तो रात में देख लेना चाँद पर काले धब्बे ज़रूर दिखाई देंगे।"
अच्छा ठीक है मैं रात में देखने की कोशिश करूँगा।" आशीष ने कहा। वह एक नयी गप्प सोच रहा था।
"हाँ याद आया, आशीष बोला, "पिछले साल जब तुम्हारे पापा का ट्रांसफर यहाँ नहीं हुआ था तो एक दिन खूब ज़ोरों की बारिश हुई। इतनी बारिश कि पानी बूँदों की बजाय रस्से की तरह गिर रहा था। पहले तो मैं उसमें नहाया फिर पानी का रस्सा पकड़ कर ऊपर चढ़ गया। पता है वहाँ क्या था?"
"क्या था?" रोहित ने आश्चर्य से पूछा।
"वहाँ धूप खिली हुई थी। धूप में नन्हें नन्हें घर थे, इन्द्रधनुष के बने हुए। एक घर के बगीचे में सूरज आराम से हरी-हरी घास पर लेटा आराम कर रहा था और नन्हंे-नन्हें सितारे धमाचौकड़ी मचा रहे थे "
"सितारे भी कभी धमाचौकड़ी मचा सकते हैं?" रानी दीदी ने टोंक दिया। न जाने वो कब आशीष और रोहित के पास आ खड़ी हुई थीं और उनकी बातें सुन रही थीं।
"अरे दीदी, हम कोई सच बात थोड़ी कह रहे हैं।" रोहित ने सफाई दी।
"अच्छा तो तुम झूठ बोल रहे हो?" रानी ने धमकाया।
"नहीं दीदी, हम तो गप्पें खेल रहे हैं और हम खुशी के लिये खेल रहे हैं, किसी का नुक्सान नहीं कर रहे हैं।" आशीष ने कहा।
"भला ऐसी गप्पें हाँकने से क्या फायदा जिससे किसी का उपकार न हो। मैने एक गप्प हाँकी और दो बच्चों का उपकार भी किया।"
"वो कैसे ?" दोनों बच्चों ने एक साथ पूछा।

अभी अभी तुम दोनों की मम्मियाँ तुम्हें नाश्ते के लिये बुला रही थीं। उन्हें लगा कि तुम लोग बगीचे में खेल रहे होगे लेकिन मैने गप्प मारी कि वे लोग तो मेरे घर में बैठे पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने मुझसे तुम दोनों को भेजने के लिये कहा हैं।

यह सुनते ही आशीष और रोहित गप्पें भूल कर अपने-अपने घर भागे। उन्हें डर लग रहा था कि मम्मी उनकी पिटाई कर देंगी लेकिन मम्मियों ने तो उन्हें प्यार किया और सुबह-सुबह पढ़ाई करने के लिये शाबशी भी दी। रानी दीदी की गप्प को वे सच मान बैठी थीं।

कक्षा: आठवीं

जादू की छड़ी
इला प्रवीण


एक रात की बात है शालू अपने बिस्तर पर लेटी थी। अचानक उसके कमरे की खिडकी पर बिजली चमकी। शालू घबराकर उठ गई। उसने देखा कि खिडकी के पास एक बुढिया हवा मे उड़ रही थी। बुढ़िया खिडकी के पास आइ और बोली ``शालू तुम मुझे अच्छी लड़की हो। इसलिए मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूँ।'' शालू यह सुनकर बहुत खुश हुई।

बुढिया ने शालू को एक छड़ी देते हुए कहा ``शालू ये जादू की छड़ी है। तुम इसे जिस भी चीज की तरफ मोड़ कर दो बार घुमाओगी वह चीज गायब हो जाएगी।'' अगले दिन सुबह शालू वह छड़ी अपने स्कूल ले गई। वहा उसने शैतानी करना शुरू किया। उसने पहले अपने समने बैठी लड़की की किताब गायब कर दी फिर कइ बच्चों की रबर और पेंसिलें भी गायब कर दीं। किसी को भी पता न चला कि यह शालू की छड़ी की करामात है।

जब वह घर पहुँची तब भी उसकी शरारतें बंद नही हुई। शालू को इस खेल में बडा मजा आ रहा था। रसोई के दरवाजे के सामने एक कुरसी रखी ती। उसने सोचा, ``क्यों न मै इस कुरसी को गायब कर दूँ। जैसे ही उसने छडी घुमाई वैसे ही शालू की माँ रसोइ से बाहर निकल कर कुरसी के सामने से गुजरीं और कुरसी की जगह शालू की माँ गायब हो गईं।

शालू बहुत घबरा गई और रोने लगी। इतने ही में उसके सामने वह बुढिया पकट हुई। शालू ने बुढिया को सारी बात बताई। बुढिया ने शालू से कहा `` मै तुम्हारी माँ को वापस ला सकती हू लेकिन उसके बाद मै तुमसे ये जादू की छडी वापस ले लूगी।''

शालू बोली ``तुम्हे जो भी चाहिए ले लो लेकिन मुझे मेरी माँ वापस ला दो।'' तब बुढिया ने एक जादुई मंत्र पढ़ा और देखते ही देखते शालू की माँ वापस आ गई। शालू ने मुड़ कर बुढ़िया का शुक्रिया अदा करना चाहा लेकिन तब तक बुढ़िया बहुत दूर बादलों में जा चुकी थी। शालू अपनी माँ को वापस पाकर बहुत खुश हुई और दौडकर गले से लग गई।

कक्षा: नौवीं

दोस्ती
कहानी - प्रमिला गुप्ता


शहर से दूर जंगल में एक पेड़ पर गोरैया का जोड़ा रहता था। उनके नाम थे, चीकू और चिनमिन। दोनो बहुत खुश रहते थे। सुबह सवेरे दोनो दाना चुगने के लिये निकल जाते। शाम होने पर अपने घोंसले मे लौट जाते। कुछ समय बाद चिनमिन ने अंडे दिये।

चीकू और चिनमिन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दानों ही बड़ी बेसब्री से अपने बच्चों के अंडों से बाहर निकलने का इंतजार करने लगे। अब चिनमिन अंडों को सेती थी और चीकू अकेला ही दाना चुनने के लिये जाता था।

एक दिन एक हाथी धूप से बचने के लिये पेड़ के नीचे आ बैठा। मदमस्त हो कर वह अपनी सूँड़ से उस पेड़ को हिलाने लगा। हिलाने से पेड़ की वह डाली टूट गयी, जिस पर चीकू और चिनमिन का घोंसला था। इस तरह घोंसले में रखे अंडे टूट गये।

अपने टूटे अंडों को देख कर चिनमिन जोरों से रोने लगी। उसके रोने की आवाज सुन कर, चीकू और चिनमिन का दोस्त भोलू -- उसके पास आये और रोने का कारण पूछने लगे।

चिनमिन से सारी बात सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ। फिर दोनो को धीरज बँधाते हुए भोलू -- बोला, "अब रोने से क्या फायदा, जो होना था सो हो चुका।"

चीकू बोला, "भोलू भाई, बात तो तुम ठीक कर रहे हो, परंतु इस दुष्ट हाथी ने घमंड में आ कर हमारे बच्चों की जान ले ली है। इसको तो इसका दंड मिलना ही चाहिये। यदि तुम हमारे सच्चे दोस्त हो तो उसको मारने में हमारी मदद करो।"

यह सुनकर थोड़ी देर के लिये तो भोलू दुविधा में पड़ गया कि कहाँ हम छोटे छोटे पक्षी और कहाँ वह विशालकाय जानवर। परंतु फिर बोला, "चीकू दोस्त, तुम सच कह रहे हो। इस हाथी को सबक सिखाना ही होगा। अब तुम मेरी अक्ल का कमाल देखो। मैं अपनी दोस्त वीना मक्खी को बुला कर लाता हूँ। इस काम में वह हमारी मदद करेगी।" और इतना कह कर वह चला गया।

भोलू ने अपनी दोस्त वीना के पास पहुँच कर उसे सारी बात बता दी। फिर उसने उससे हाथी को मारने का उपाय पूछा। वीना बोली, "इससे पहले की हम कोई फैसला करे, अपने मित्र मेघनाद मेंढ़क की भी सलाह ले लूँ तो अच्छा रहेगा। वह बहुत अक्लमंद है। हाथी को मारने के लिये जरूर कोई आसान तरीका बता देगा।

चीकू, भोलू और वीना, तीनों मेघनाद मेंढ़क के पास गये। सारी बात सुन कर मेघनाद बोला, "मेरे दिमाग में उसे मारने की एक बहुत ही आसान तरकीब आयी है।

वीना बहन सबसे पहले दोपहर के समय तुम हाथी के पास जा कर मधूर स्वर में एक कान में गुंजन करना। उसे सुन कर वह आनंद से अपनी आँखे बंद कर लेगा। उसी समय भोलू अपनी तीखी चोंच से उसकी दोनो आँखें फोड़ देगा। इस प्रकार अंधा हो कर वह इधर-उधर भटकेगा।

थोड़ी देर बाद उसको प्यास लगेगी तब मैं खाई के पास जा कर अपने परिवार सहित जोर-जोर से टर्-टर् की आवाज करने लगूँगा। हाथी समझेगा की यह आवाज तालाब से आ रही है। वह आवाज की तरफ बढ़ते बढ़ते खाई के पास आयेगा और उसमें जा गिरेगा और खाई में पड़ा पड़ा ही मर जाएगा।

सबको मेघनाद की सलाह बहुत पसंद आयी। जैसा उसने कहा था, वीना और भोलू ने वैसा ही किया। इस तरह छोटे छोटे जीवों ने मिल कर अपनी अक्ल से हाथी जैसे बड़े जीव को मार गिराया और फिर से प्यार से रहने लगे।